MP का अजब-गजब गांव ! इस गांव के घरों में नहीं होती रंगाई-पुताई, कोई काले वस्त्र और जूते भी नहीं पहनता, पानी छानने पर हो जाता है ऐसा, जान कर हो जाएंगे हैरान

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के एक गांव में कालेश्वर भैरव मंदिर की ऐसी सत्ता है कि लोग उनके सम्मान में अपने घरों में रंग-रोगन तक नहीं करवाते। यहां तक कि दीवाली पर घरों के बाहर रंगोली भी नहीं बनती। लोग काले कपड़े भी नहीं पहनते।

MP का अजब-गजब गांव ! इस गांव के घरों में नहीं होती रंगाई-पुताई, कोई काले वस्त्र और जूते भी नहीं पहनता, पानी छानने पर हो जाता है ऐसा, जान कर हो जाएंगे हैरान
रतलाम जिले के आलोट विकासखंड का कछिलाय गांव जहां घरों पर नहीं होता रंग-रोगन।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । मौजूदा दौर वैज्ञानिक अवधारणाओं पर चलने का है लेकिन देश में आज भी कई परंपराएं इनके विपरीत हैं। मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के एक गांव में ऐसी ही परंपरा प्रचलित है। यहां न तो किसी घर में रंगाई-पुताई होती है और न ही यहां लोग पानी को छान कर पीते हैं। कोई काले वस्त्र और जूते तक नहीं पहनता। ग्रामीण गांव में जिन कालेश्वर भैरव की सत्ता को मानते हैं, उनके मंदिर के सामने से दूल्हा तक घोड़े पर चढ़कर नहीं निकलता।

(यहां हर घर पर यही लिखा है)

सुनने में बेशक यह अजीब लगे लेकिन ये आलोट विकासखंड के ‘कछालिया’ गांव और यहां के लोगों की सच्चाई है। तकरीबन 1400 की आबादी वाले इस गांव में कालांतर में घटित कुछ घटनाओं ने ग्रामीणों को ऐसी परंपराओं और मान्यताओं का निर्वाह करने के लिए विवश कर दिया। लोग भले ही इन्हें अंधविश्वास कहें लेकिन ये कछालियावासियों के जीवन का अहम् हिस्सा हैं। इनका पालन करना वे भूले से भी नहीं भूलते। ग्रामीणों का मानना है कि इन परंपराओं का निर्वाह नहीं करना गांव और जीवन पर संकट ला सकता है।

मंदिर में हो सकता है रंग-रोगन

ग्रामीणों की मानें तो काले कपड़े पहनने वालों के साथ दुर्घटना होना तय है। ऐसा होते उन्होंने देखा भी है। अगर कोई काले कपड़े पहनकर मंदिर में चला जाता है तो उसे मधुमक्खियां काट लेती हैं या फिर वह बीमार हो जाता है। रंग-रोगन को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि यह सिर्फ मंदिर में ही हो सकता है या फिर सरकारी भवन में।

घोड़ी पर बैठ करने निकलने पर होता है हादसा

अगर कोई घोड़ी पर बैठ कर मंदिर के सामने से गुजरता है तो वह थोड़ी दूर भी नहीं जा पाता है और उसके साथ घटना हो जाती है। या तो घोड़ा गिरा देता है या फिर सवार बेहोश हो जाता है। उसे वापस आकर मंदिर में मत्था टेकता है और नारियल वधारता है तभी आगे जा पाता है। मंदिर के सामने से शवयात्रा भी नहीं गुजरती। ऐसी अनेक घटनाएं देखी हैं।

यह हुई थी अनहोनी

ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने बताया कि एक बार एक व्यक्ति अपने घर की छत कवेलू से बना रहा था। उसी वक्त उसके 20 साल के लड़के की छत से गिरने से मौत हो गई थी। ऐसी अनहोनी के चलते दिवाली जैसे खास मौके पर भी किसी भी घर में न तो रंगाई-पुताई होती है और न ही घर के बाहर रंगोली ही बनती है। 

इनसे जानें गांव की परंपरा के बारे में

कछालिया गांव में जन्मी कृष्णा विवाह के बाद दूसरे गांव जा चुकी हैं। वे बताती हैं कि दादा और पापा से सुनते आ रहे हैं कि गांव में घरों में रंग-रोगन नहीं होता है। काले कपड़े, जूते-मोजे आदि भी नहीं पहनते। काजल और काले छाते के उपयोग में मनाही नहीं है।

कैलाश धाकड़ ने बताया कि सबकुछ गांव में विराजित भैरव बाब जी के मान-सम्मान में परंपराओं का निर्वाह होता है। उनका मंदिर बहुत चमत्कारिक है। अगर कोई परंपरा का पालन नहीं करता है तो उसके भुगताना ही पड़ता है। इस बारे में देखते-सुनते तीन पीढ़ियां गुजर गई हैं।

कछालिया का नाम सुन दुकानदार भी नहीं देते काले वस्त्र

युवा समरथ शर्मा के अनुसार हर घर के बाहर कालेश्वर भैरवनाथ की कृपा लिखा हुई है। बुजुर्गों द्वारा बनाई परंपरा का आज दिन तक किसी ने उल्लंघन नहीं किया वरना आर्थिक और जनहानित तय है। अन्य गंवों में भी कोई खरीददारी करने जाता है और वह बताता है कि कछालिया से आया तो दुकानदार काली वस्तुएं उन्हें नहीं बेचते।

कालेश्वर भैरव बाबा मंदिर के पुजारी चैनपुरी गोस्वामी के अनुसार गांव में कोई पानी भी छानकर नहीं पीता। अगर किसी ने पानी छानी तो उसमें तत्काल कीड़े पड़ जाते हैं और वह पानी पी ले तो बीमार हो जाता है। काले कपड़े, जूते-मोजे पहनने वाले को मधुमक्खियां काट लेती हैं। मंदिर कितना पुराना है, पता नहीं।

कालेश्वर भैरव का मान-सम्मान जरूरी

40 साल पहले ब्याह कर कछालिया गांव आईं सुंदर बाई बताती हैं कि उनके ससुर सहित परिवार के सभी लोग परंपराओं के बारे में बताते रहे हैं। अगर कोई कालेश्वर भैरव बाबा का मान-सम्मान नहीं रखता है तो दुर्घटना हो जाती है।

डिस्क्लेमर

एसीएन टाइम्स किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को बढ़ावा देने में यकीन नहीं रखता और न ही समाज द्वारा स्थापित मान्यताओं, लोक परंपराओं के अस्तित्व पर सवाल ही खड़ा करता है। समाज में जो हो रहा है, वह समाज के अन्य लोगों को जानने का पूर्ण अधिकार है। इसी दिशा में एसीएन टाइम्स का यह एक छोटा सा प्रयास है।