लेबड़-जावरा व जावरा-नयागांव फोरलेन पर लागत से 250 व 350 फीसदी हो चुकी टोल वसूली, टोल वसूली बंद करने की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई 30 मार्च को

पूर्व महापौर पारस सकलेचा ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर जावरा नयागांव तथा लेबर जावरा फोरलेन पर टोल वसूली बंद करने की गुहार लगाई है। हाईकोर्ट में इस पर 30 मार्च को सुनवाई होना है।

लेबड़-जावरा व जावरा-नयागांव फोरलेन पर लागत से 250 व 350 फीसदी हो चुकी टोल वसूली, टोल वसूली बंद करने की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई 30 मार्च को
सांकेतिक फोटो

2033 तक 3800 व 4600 करोड़ रुपए हो जाएगी वसूली 

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । लेबड़ - जावरा और जावरा - नयागांव फोरलेन पर लागत से कई गुना ज्यादा टोल टैक्स संग्रह किया जा चुका है। इसके चलते पूर्व महापौर पारस सकलेचा द्वारा उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ याचिका दायर कर दोनों मार्ग पर टोल संग्रह बंद करने की गुहार लगाई है। न्यायालय में इस पर 30 मार्च को सुनवाई होगी।

लेबड़-जावरा और जावरा-नयागांव फोरलेन पर टोल वसूली को लेकर मप्र हाईकोर्ट इंदौर में याचिका विचाराधीन है। याचिका रतलाम के पूर्व महापौर पारस सकलेचा की ओर से दायर की गई थी। इस पर सुनवाई के लि 30 मार्च की तारीख नियत है। सकलेचा के अनुसार याचिका के माध्यम से न्यायालय को बताया गया है कि लेबड़ - जावरा रोड की कुल लागत 605 करोड़ रुपए है। इस पर से गुजरने वाले वाहनों से 31 जनवरी, 2021 तक 1315 करोड़ रुपए यानी लागत से 217 फीसदी अधिक टोल वसूला जा चुका है।

इसी तरह जावरा - नयागांव फोरलेन 450 करोड़ रुपए में बना था। उस पर 31 जनवरी, 2021 तक 1461 करोड़ रुपए वसूले जा चुके हैं। यह लागत की तुलना में 324 फीसदी ज्यादा है। पूर्व में डीपीआर में टोल वसूली की अवधि 25 वर्ष अर्थात 2033 तय की गई थी। डीपीआर में तब उपरोक्त अवधि तक लागत का सिर्फ 80 फीसदी ही संग्रह हो पाने का अनुमान दर्शाया गया था जबकि उसकी तुलना में क्रमश: तीन तथा चार गुना टोल वसूला जा चुका है।

संविधान के अनुसार रेवेन्यू बढ़ाने व निजी व्यक्ति को लाभ नहीं पहुंचा सकते

सकलेचा ने पिटीशन में कहा है कि शासन ट्रस्टी के रूप में भूमि का उपयोग जनता की भलाई के लिए कर सकता है। इसके विपरीत वह कुछ व्यक्तियों को अनावश्यक लाभ पहुंचाने के लिए भूमि का उपयोग नहीं कर सकता। संविधान के अनुसार कल्याणकारी राज्य में प्राकृतिक संसाधन जनता की संपत्ति है और उसका उपयोग शासन का रेवेन्यू बढ़ाने के लिए और निजी व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकता।

विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भी किया कि सरकार को असीमित अधिकार नहीं

याचिका में तर्क दिया गया है कि इंडियन टोल एक्ट-1851 के सेक्शन 2 के बारे में विभिन्न उच्च न्यायालय ने अपने फैसले दिए हैं। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि, सरकार को भूमि के उपयोग पर, रोड और ब्रीज पर टोल लगाने का असीमित अधिकार नहीं है। उसे सिर्फ उसके निर्माण में लगी राशि, उसका प्रबंधन तथा उसके ऊपर होने वाला ब्याज खर्च, इतना वसूल करने का अधिकार है। वह अपने अधिकार का असीमित उपयोग कर जनता से अनावश्यक वसूली कर किसी भी व्यक्ति को लाभ पहुंचाने का कार्य नहीं कर सकता है। 

11 साल में ही हो गई कई सौ गुना वसूली, इसलिए अब बंद करें

2033 तक सकलेचा ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि उक्त दोनों फोरलेन पर लागत से 250 से 350 प्रतिशत टोल वसूली मात्र 11 साल में ही हो गई है। अगर पूरी अवधि 2033 तक टोल वसूली होती रहे तो दोनों तो रोड पर क्रमशः लगभग 3800 करोड़ तथा 4600 करोड़ रुपए वसूल होंगे। अतः दोनों मार्ग पर टोल वसूली बंद की जाए।