धर्मांतरित ईसाई व मुसलमानों को ST की सूची से बाहर करने के लिए आदिवासी लामबंद, 1 मई को रतलाम में महारैली कर बुलंद करेंगे आवाज

धर्मांतरण कर मुस्लिम व ईसाई बन चुके लोग आदिवासियों के संरक्षण व उनका जीवन स्तर उठाने के लिए लागू आरक्षण व अन्य सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। जनजाति सुरक्षा मंच ने ऐसे लोगों को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची को बाहर करने की मांग को लेकर जनजागरण अभियान शुरू किया है। इसके तहत मई में रतलाम में महारैली और जुलाई में दिल्ली में एकत्रीकरण होगा।

धर्मांतरित ईसाई व मुसलमानों को ST की सूची से बाहर करने के लिए आदिवासी लामबंद, 1 मई को रतलाम में महारैली कर बुलंद करेंगे आवाज
पत्रकार वार्ता को संबोधित करते जनजाति सुरक्षा मंच के पदाधिकारी।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण सहित अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया है। इनका लाभ अपनी जाति छोड़कर ईसाई अथवा मुस्लिम बने लोग उठा रहे हैं। ऐसा संविधान की एक विसंगति के कारण हो रहा है जिसे सुधारकर ऐसे लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने के लिए आदिवासी लामबंद हो रहे हैं। आदिवासियों की इस मांग को जनआंदोलन बनाने का बीड़ा जनजाति सुरक्षा मंच ने उठाया है। इसके तहत मंच द्वारा 1 मई को रतलाम में जनजागरण महारैली निकाली जाएगी। इसमें 650 गांवों के 50 हजार लोगों को लाने का लक्ष्य है।

यह जानकारी जनजाति सुरक्षा मंच के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के प्रदेश संयोजक कालूसिंह मुजाल्दा, निधि प्रमुख रूपचंद्र मईड़ा, प्रदेश संपर्क प्रमुख मांगीलाल खराड़ी, जिला संयोजक कैलाश वसुनिया एवं जिला प्रचार प्रमुख दीपक निनामा ने संयुक्त रूप से रतलाम प्रेस क्लब भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में दी। पत्रकार वार्ता के दौरान डॉ. उदय यार्दे, नारायण मईड़ा, पीरूलाल डागर सहित अन्य सदस्य भी मौजूद रहे। पदाधिकारियों ने बताया देश में 700 से अधिक जनजातियां हैं। इनके विकास और उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया है। सुविधाओं का लाभ उन जनजातियों के स्थान पर वे लोग उठा रहे हैं जो अपनी जाति छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए। जनजातियों को ये सुविधाएं एवं अधिकार अपनी संस्कृत, आस्था, परंपरा की सुरक्षा करते हुए विकास करने के लिए सशक्त बनाने के लिए मिले थे। दुर्भाग्यवश धर्मांतरित लोग मूल जनजातियों का 80 फीसदी लाभ छीन रहे हैं। ऐसे लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की मांग को जनआंदोलन बनाने का निर्णय लिया गया है। इसके चलते ही 1 मई को दोपहर 12.30 बजे शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय रतलाम से महारैली निकाली जाएगी।

संविधान की इस विसंगति के कारण छिन रहा जनजातियों का हक

प्रदेश संयोजक मुजाल्दा के अनुसार धर्मांतरण पहले भी होता रहा है लेकिन आजादी के बाद ज्यादा तेजी से हुआ। संविधान के अनुच्छेद 341 एवं 342 में क्रमशः अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए अखिल भारतीय व राज्यवार आरक्षण तथा संरक्षण के उद्देश्य से 1950 तत्कालीन राष्ट्रपति ने सूचियां जारी की थीं। इन सूचियों के आधार पर ही संविधान के अनुसार ही अजा और अजजा वर्ग के लिए विभिन्न प्रावधान लागू किए गए थे। सूची जारी करते समय धर्मांतरित ईसाई और मुस्लिमों को अनुसूचित जाति में तो शामिल नहीं किया गया किंतु अनुसूचित जनजातियों की सूची से धर्मातरित होकर उक्त समुदायों में जाने वालों को बाहर नहीं किया गया। यह बड़ी विसंगति है।

5 फीसदी स्थानांतरित ईसाई ले रहे अजजा की सुविधाओं का 80 फीसदी लाभ

मंच के पदाधिकारियों ने बताया सर्वप्रथम 1968 में उक्त विसंगति की ओर पूर्व सांसद डॉ. कार्तिक बाबू उरांव ने इस संवैधानिक विसंगति की ओर संसद का ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने इसे दूर करने के लिए ’20 वर्ष की काली रात’ पुस्तक भी लिखी। डॉ. उरांव द्वारा किए सर्वे में यह बात सामने आई थी कि 5 प्रतिशत धर्मांतरित ईसाई राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति की 62 फीसदी से अधिक नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे हैं। इस विसंगति को दूर करने के लिए तब संयुक्त संसदीय समिति का गठन भी हुआ था जिसने अनुच्छेद 342 में धर्मांतरित लोगों को बाहर करने के लिए 1950 में राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश में संशोधन की अनुशंसा की थी। 1970 के दशक में प्रयास जारी थे किंतु कानून बनने से पहले ही लोकसभा भंग हो गई। सन 2000 की जनगणना व 2009 के डॉ. जे. के. बजाज के अध्ययन में भी उपरोक्त बात उजागर हुई थी।

‘संगठन नहीं, जनजागरण का मंच है जनजाति सुरक्षा मंच’

प्रदेश संयोजक मुजाल्दा ने बताया जनजाति सुरक्षा मंच संगठन न होकर एक उद्देश्य के लिए आवाज उठाने का एक मंच है। इसका गठन 2006 में हुआ था। 2009 में अपने एक सूत्री अभियान के तहत 28 लाख पोस्टकार्ड लिखवाकर राष्ट्रपति को भेज कर धर्मांतरित ईसाई व मुस्लिम को अनुसूचित जनजाति सूची से बाहर करने के लिए कानून बनाने की मांग की गई थी। 2020 में 448 जिलों में जिला कलेक्टर व संभागीय आयुक्त के माध्यम से तथा विभिन्न राज्यों के राज्यपाल व मुख्यमंत्रियों से मिल कर भी राष्ट्रपति तक बात पहुंचाई गई। 29 अक्टूबर 2021 को डॉ. कार्तिक उरांव के जन्मदिन पर इस बारे में विस्तृत चर्चा की गई।

समाज से यह चाहता है जनजाति सुरक्षा मंच

  • राजनीतिक दल अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीट पर धर्मांतरित व्यक्ति को टिकट नहीं दें।
  • अनुसूचित जनजाति सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक व सासंद इस मांग के समर्थन में आवाज उठाएं और धर्मांतरित व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में से हटाने में मदद करें।
  • ऐसे लोग जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं वे जनजातीय वर्ग के साथ हो रहे इस अन्याय की लड़ाई मंच के साथ खड़े हों और ग्राम पंचायत से लेकर सामाजिक पदों पर बैठे धर्मांतरित व्यक्तियों को बेनकाब करें।
  • जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सरकारी नौकरियों को हथियाने वाले ऐसे गलत एवं षड्यंत्रकारी धर्मांतरित व्यक्तियों के खिलाफ न्यायालयीन कार्यवाही हेतु आगे आएं।
  • केंद्र एवं राज्य सरकारों में ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों से भी यह अपेक्षा है कि वे समाज के अंतिम छोर पर खड़े इस जनजातीय समुदाय की आवाज बनें और धर्मांतरित व्यक्तियों को अनुचित लाभ देने से खुद को रोकें।
  • भारत की प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक एवं वेब मीडिया धर्मांतरित व्यक्तियों को अनुचित लाभ देने की इस लड़ाई में हमारे साथ पूरा सहयोग करे।
  • भारत के प्रत्येक संसद एवं विधानसभा सदस्य जनजातियों को उनका वाजिब हक दिलाने में अपनी ओर से व्यक्तिगत रुचि लेकर पहल करें और धर्मांतरित व्यक्तियों को बेनकाब करें।
  • धर्मांतरित जनजातीय व्यक्तियों को, अनुसूचित जनजात सूची से हटाया जाए।
  • अगर जनजातीय धर्म, संस्कृति, सभ्यता और मान्यता को जीवित रखना है तो उनके स्वधर्म को जीवित रखना होगा।
  • सरकारी नौकरियां पहले से ही कम हैं, यदि समय रहते धर्मांतरित लोगों को पदच्युत नहीं किया गया तो जनजाति समुदाय को नौकरियों का अवसर कभी नहीं मिल पाएगा। इसलिए इस लड़ाई में सभी की भागीदारी आवश्यक है।