नीर का तीर : भीड़ बढ़ाने बुलाए गए ‘प्रबुद्धजन’ करते रहे ‘संवाद’ का इंतजार, सीएम ने अपनी बात कही और आभार व्यक्त कर चलते बने, लोग बोले- ये तो प्रबुद्धजनों का अपमान है

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नगर आगमन पर हुए ‘प्रबुद्धजन संवाद’ से ‘संवाद’ नाम की चिड़िया हुई काफूर। लोग बोले यह तो प्रबुद्धजनों का अपमान है।

नीर का तीर : भीड़ बढ़ाने बुलाए गए ‘प्रबुद्धजन’ करते रहे ‘संवाद’ का इंतजार, सीएम ने अपनी बात कही और आभार व्यक्त कर चलते बने, लोग बोले- ये तो प्रबुद्धजनों का अपमान है
प्रबुद्धजन संवाद के बाद लोग बोले यह तो प्रबुद्धजनों का अपमान है। (मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का फाइल फोटो)

नीरज कुमार शुक्ला

रतलाम । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रतलाम आ रहे हैं, वे ये करेंगे, वो करेंगे, प्रबुद्धजन से संवाद भी करेंगे... ऐसी मुनादी विगत कई दिनों से कराई जा रही थी। उद्देश्य शायद इतना भर था कि कि प्रदेश के मुखिया के आयोजन में भीड़ भर जुट जाए। अब भीड़ कैसी भी, आयोजकों इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब उद्देश्य सिर्फ भीड़ जुटा ही हो तो आमांतरण-निमंत्रण में उपयोग किए गए शब्दों की महत्ता भी मायने नहीं रखती।

चुनावी साल में ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटे और वह ज्यादा से ज्यादा वोटों में तब्दील हो, इस उद्देश्य से सत्ताधारी दल कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। अब इसमें सरकारी तंत्र भी झोंकना पड़े तो इसमें कतई कोताही नहीं बरती जाती। इससे फायदा यह होता है कि लोगों को लुभाने का कोई भी आयोजन सरकारी बना कर प्रस्तुत किया जा सकता है। खैर, मुद्दा यह नहीं है, सरकारी सिस्टम की स्थिति तो जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसी ही है और फिर सत्ता में काबिज लोगों की उंगली पर नाचना सरकारी सिस्टम की मजबूरी है। उसके किस काम से कब कौन खुश हो जाए और कब कौन नाराज, कह नहीं सकते।

दो दिन पहले प्रदेश के गृह मंत्री हिम्मत कोठारी नाराज हुए तो उन्हें मनाने कलेक्टर को उनके घर जाना पड़ा। वे मान भी गए और आयोजन में भी पहुंचे। वे अपनी पार्टी के लिए समर्पित हैं इसलिए उनका और उनके समर्थकों का वोट तो आगामी चुनाव में सत्ताधारी दल को मिल ही जाएगा लेकिन अब उनकी नाराजगी का क्या शनिवार को हुए ‘प्रबुद्धजन संवाद’ में ‘अपमानित’ हुए। चौंकिए नहीं, हम अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहे, जो हुआ वही बता रहे हैं। इस आयोजन में आमंत्रित किए जाने पर पहले जो लोग पहले काफी उत्साहित थे, समारोह खत्म होने के बाद हाल से बाहर निकले तो उनके अंदाज में उतनी ही ज्यादा तल्खी भी थी। किसी का कहना था कि जैसे-जैसे चुनाव पास आएगा, ऐसे आयोजन बढ़ते जाएंगे तो कुछ ने इसे ‘प्रबुद्धनों का अपमान’ ही निरूपित कर दिया।

...और काफूर हो गई संवाद नाम की चिड़या

दरअसल प्रबुद्धजनों को इस भरोसे के साथ आमंत्रित किया गया था कि मुख्यमंत्री उनसे संवाद करेंगे। इसलिए अपने-अपने क्षेत्र के जानकारी इसकी तैयारी भी कर के पहुंचे थे ताकि वे अपनी बात प्रदेश के मुखिया के समक्ष रख सकें और उनका उत्तर पा सकें। तय समय से करीब डेढ़ घंटे की देरी से शुरू हुए आयोजन में भूत, वर्तमान और भविष्य की बात तो हुई लेकिन 'संवाद नाम की चिड़िया' कब और कहां काफूर हो गई, कोई समझ ही नहीं पाया। सभी संवाद शुरू होने का इंतजार करते रह गए और मुख्यमंत्री ने अपनी बात करने के बाद सबका आभार भी ज्ञापित कर दिया।

बदल तो नहीं गई संवाद की परिभाषा?

संवाद शब्द की एक सामान्य परिभाषा हमने भी स्कूल के जमाने में पढ़ी थी। वह यह कि- "जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी विशेष मुद्दे पर आपस में बातचीत करते हैं तो उसे संवाद कहते हैं।" संवाद दो शब्दों से मिलकर बना है सम् और वाद। इस प्रकार संवाद का शाब्दिक अर्थ समान रूप से विचारों का आदान-प्रदान होता है। अब मुख्यमंत्री के आगमन पर आयोजित किया गया ‘प्रबुद्धजन संवाद’ से आयोजकों का क्या आशय था, समझ नहीं आया। वैसे यह जरूरी भी नहीं कि हर बात, हर किसी की समझ में आ ही जाए। इस मामले में हम ठहरे निपट अनाड़ी। यदि आप को कुछ समझ आए तो कमेंट बॉक्स में प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा।