अपनी लाइन बढ़ाओ, दूसरे की लाइन मत काटो, दूसरे की लाइन काटने वाला कभी आगे नहीं बढ़ पाता - आचार्य श्री विजयराजजी

रतलाम के नवकार भवन और छोटू भाई की बगीचे में आचार्य और मुनिजनों के प्रवचन जारी हैं। इस दौरान आचार्य श्री विजयराज जी ने अरिहंत बोधि क्लास में प्रतिस्पर्धा के सही मायने समझाए।

अपनी लाइन बढ़ाओ, दूसरे की लाइन मत काटो, दूसरे की लाइन काटने वाला कभी आगे नहीं बढ़ पाता - आचार्य श्री विजयराजजी
आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के प्रवचन।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । मैं भी बढ़ूं, तू भी बढ़। ये प्रतिस्पर्धा अच्छी होती है। मैं ही बढ़ूं, ये प्रतिस्पर्धा ठीक नहीं है। जीवन में हमेशा अपनी लाइन बढ़ाओ, दूसरे की लाइन मत काटो, क्योंकि जो लाइन काटने में लगा रहता है, वह कभी आगे नहीं बढ़ पाता है।

यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में अलसुबह अरिहंत बोधि क्लास में कही। उन्होंने प्रतिस्पर्धा का अंतर समझाते हुए कहा कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ही सदैव कल्याणकारी रहती है। अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा से किसी का भला नहीं होता।  आचार्यश्री ने क्लास में हिम्मत रखने, हक का खाने, ईश्वर को भजने और शांतिपूर्वकर रहने की सीख भी दी।

नो एंगर-डे मनाने का आह्वान

छोटू भाई की बगीची में श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शान्त क्रांति जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी मसा ने प्रवचन में नो एंगर डे मनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह मिथ्या मान्यता है कि  क्रोध के बिना काम नहीं चलता। क्रोध से व्यक्ति अपनी खुद की पहचान बिगाड़ता है। क्रोध से किसी का भला नहीं होता है। क्रोध को जो छोड़ देता है, उसे स्वयं भी शांति मिलती है और दूसरे भी सुखी रहते हैं।

उन्होंने कहा कि क्रोध छोड़ने के लिए वर्षीतप की भांति एक दिन छोड़कर क्रोध करने की शुरुवात करनी चाहिए। देश में अब तक 7500 श्रावक-श्राविकाओं ने इस प्रकार का तप करने के ऐसे संकल्प लिए है। क्रोध के परिणामों का चिंतन करके सबको क्रोध का त्याग करना चाहिए। क्योंकि क्रोध के त्याग से प्रभु का प्रिय बनने की पात्रता मिलती है। प्रवचन को विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। संचालन हर्षित कांठेड ने किया।