हाईकोर्ट का फैसला : व्यापमं घोटाला संबंधी पारस सकलेचा की याचिका खारिज, न्यायालय ने कहा- शिकायतकर्ता को इसका वैधानिक अधिकार नहीं
मप्र हाईकोर्ट इंदौर ने कांग्रेस नेता पारस सकलेचा की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने व्यापमं घोटाले की जांच जल्दी पूरी कर अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने की मांग की थी।
एसीएन टाइम्स @ इंदौर । मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय इंदौर की ने व्यापमं घोटाले की जांच को लेकर रतलाम के सामाजिक कार्यकर्ता, उद्योगपति एवं पूर्व महापौर पारस सकलेचा द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी है। न्यायालय ने कहा है कि सकलेचा मामले में पीड़ित पक्ष नहीं होने से उन्हें शिकायत करने और याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है।
सामाजिक कार्यकर्ता एवं उद्योगपति तथा कांग्रेस नेता पारस सकलेचा द्वारा मप्र उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें व्यापमं घोटाले को लेकर चल रही जांच में देरी होने की बात उठाते हुए संबंधित अधिकारियों पर जांच प्रभावित होने का आरोप लगाया था। सकलेचा ने याचिका में मध्य प्रदेश शासन के प्रमुख सचिव, पुलिस अधीक्षक विशेष कार्य बल (व्यापमं) तथा व्यापमं घोटाले की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो के पुलिस अधीक्षक को पक्षकार बनाया था। सकलेचा की रिट याचिका संख्या 20371/2023 की सुनवाई उच्च न्यायालय की डबल बेंच के न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी एवं गजेंद्र सिंह ने सुनवाई की।
न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रत्यूष मिश्रा और प्रतिवादी पक्ष की ओर से एडिशनल अटॉर्नी जनरल एवं अधिवक्ता हिमांशु जोशी ने अपने-अपने तर्क रखे। साथ ही यह भी कहा गया था कि याचिका में उठाए गए प्रत्येक बिंदु को एक निश्चित अवधि में पूरा किया जाए और याचिकाकर्ता द्वारा की गई शिकायतों से संबंधित अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
9 साल में भी पूरी नहीं हुई जांच
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने न्यायालय को बताया कि याचिकाकर्ता व्यापमं घोटाले में "व्हिसिल ब्लोअर" हैं। वे वर्ष 2009 से लगातार इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं। याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि उनके खिलाफ सबूतों आदि के साथ विभिन्न शिकायतें दायर की गई थीं। घोटाले को 9 साल से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक जांच पूरी नहीं हुई है। अतः न्यायालय द्वारा दूसरे पक्ष को व्यापमं घोटाले को लेकर समय पर पूछताछ और जांच पूरी करने के निर्देश दिया जाए। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उनके द्वारा उठाए गए प्रत्येक मुद्दे पर समयबद्ध तरीके से जांच/पूछताछ पूरी करने और अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाए।
याचिकाकर्ता राजनीति से प्रेरित
मामले में प्रतिवादी पक्ष की ओर से अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल और अभिभाषक द्वारा याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर आपत्ति ली गई। उन्होंने न्यायालय को बताया कि याचिकाकर्ता राजनीति से प्रेरित व्यक्ति है और उसके इरादे गलत हैं जो स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। याचिकाकर्ता ने स्वयं खुलासा किया है कि वह विपक्षी दल का राजनीतिक नेता है। इसलिए उसके आरोप गलत हैं। याचिकाकर्ता द्वारा द्वारा आरोप लगाया गया है कि सत्ता में मौजूद सरकार जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है। बिना किसी ठोस सबूत या सहायक दस्तावेज़ के केवल याचिकाकर्ता के इस आरोप पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
न्यायालय की निगारानी में हो रही जांच
प्रतिवादी पक्ष के अभिभाषक ने कहा कि विचाराधीन मामले में विभिन्न स्थानों पर किए गए विभिन्न घोटाले शामिल हैं। इनमें विभिन्न व्यक्ति शामिल हैं। ऐसे में जांच में किसी भी तरह की जल्दबाजी के परिणामस्वरूप पूरी प्रक्रिया में गड़बड़ी हो सकती है। इसलिए देरी होना तय है और ऐसा भी नहीं है कि मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। जांच चल रही है, जो कि इस न्यायालय की व्यक्तिगत निगरानी में है। इसलिए देरी का आरोप लगाने वाले किसी भी आरोप पर जल्दबाजी में कार्रवाई नहीं की जा सकती है। अतः न्यायालय को जांच करने वालों को अपना काम करने देना चाहिए और इस स्तर पर हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।
याचिकाकर्ता न घोटाले का पक्ष न ही व्यापमं का लाभार्थी
प्रतिवादी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पास किसी भी शिकायत का कोई अधिकार नहीं है। वह न तो घोटाले का पक्ष है और न ही व्यापमं का लाभार्थी है। इसलिए, केवल शिकायत दर्ज करने से ऐसी मांग करने का कोई कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं होगा। व्यापमं पीएमटी परीक्षा के संबंध में एसटीएफ भोपाल ने एक सार्वजनिक सूचना जारी की थी। उसमें कहा गया था कि जांच की जा रही है। इसलिए जिस किसी भी व्यक्ति के पास व्यापमं के संबंध में कोई जानकारी या दस्तावेज हैं और वह इच्छुक हो तो वह एसटीएफ के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। इसके लिए 15 दिन की समय सीमा दी गई थी। इस सार्वजनिक नोटिस के आधार पर याचिकाकर्ता द्वारा ऐसे निर्देश की मांग की जा रही है। इस तरह के नोटिस जारी करने का उद्देश्य शिकायत दर्ज करना नहीं था बल्कि कुछ जानकारी/दस्तावेज प्रदान करना था। ऐसे में याचिकाकर्ता की भूमिका ही समाप्त हो जाती है। याचिका गलत और आधारहीन है। इसलिए यह खारिज किए जाने योग्य है।
कानूनी चोट से पीड़ित को अदालत में चुनौती देने का अधिकार
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल वही व्यक्ति जो किसी कानूनी चोट से पीड़ित है, अधिनियम / आदेशों / नियमों आदि को अदालत में चुनौती दे सकता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका वैधानिक या कानूनी अधिकार को लागू करने के उद्देश्य से सुनवाई योग्य है। अधिकारियों द्वारा कानून के उल्लंघन के मामले में आम जनता को शिकायत दर्ज करनी थी। इस बारे में जांच में सहायता के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष कोई जानकारी / दस्तावेज, यदि कोई हो, तो प्रस्तुत करना था।
याचिकाकर्ता के पास कोई वैधानिक या कानूनी अधिकार नहीं- न्यायालय
न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में, याचिकाकर्ता के पास कोई वैधानिक या कानूनी अधिकार नहीं। अधिकारियों की ओर से कोई वैधानिक कर्तव्य के उल्लंघन का मामला भी नहीं है जिसके आधार पर याचिकाकर्ता द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर विचार किया जा सके। यह याचिका पूरी तरह से गलत समझी गई है और इसमें कोई योग्यता और सार नहीं है। इसलिए इसे खारिज किया जाता है।